मंदिर मस्जिद के विवाद का मुद्दा हमेशा के लिए खत्म किया सुप्रीम कोर्ट ने
गुरुग्राम (मदन लाहौरिया) 10 नवंबर। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की सविंधान पीठ ने लगभग 35 वर्षों से चल रहे राम मंदिर मस्जिद विवाद पर कल सुबह 11 बजे देश के इतिहास में एक बहुत ही ऐतिहासिक फैसला सुनाया! 40 दिन तक लगातार सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर को सुरक्षित रखा गया था यह फैसला! सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई राम मंदिर मस्जिद के 35 वर्षों के विवाद के मुद्दे को हल करने के लिए वास्तव में बधाई के पात्र हैं! सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को भारतीय जनता पार्टी के नेता व कार्यकर्ता या विश्व हिन्दू परिषद तथा अन्य सभी संगठनों के नेता व कार्यकर्ता किसी की हार या जीत के संदर्भ में ना देखें! सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अथक प्रयासों से किया गया यह ऐतिहासिक फैसला भारत की शांति, एकता और सदभावना की महान परंपरा को और ज्यादा बल देगा!
अप्रैल 2002 में अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की! 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित जगह को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बाँटने का आदेश दिया था! इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर की गई थी! देश की आजादी से पहले वर्ष 1885 में महंत रघुबर दास ने इस विवाद में एक मुकदमा दायर किया था! राम मंदिर विवाद में देश आजाद होने के बाद देश का पहला मुकदमा गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी 1950 को राम जन्म भूमि पर रिसीवर नियुक्त होने के बाद पूजा-अर्चना का अधिकार मांगने के लिए दायर किया था! इस मुकदमे की सुनवाई में ही कोर्ट ने रामलला की पूजा अर्चना जारी रखने का आदेश देते हुए वहां यथास्थिति कायम रखने का निर्देश दिया था! जो लगातार जारी रहा! दूसरा मुकदमा निर्मोही अखाड़ा ने 17 दिसंबर 1959 को दाखिल किया और इस में निर्मोही अखाड़ा ने रामलला के सेवादार होने का दावा करते हुए पूजा प्रबंधन और कब्जा माँगा था! तीसरा मुकदमा 18 दिसंबर 1961 को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दाखिल किया! मालिकाना हक की मांग का यह पहला मुकदमा था! इसमें पूरी जमीन को वक्फ की संपत्ति बताते हुए विवादित ढांचे को मस्जिद घोषित करने की मांग की गई थी! चौथा मुकदमा 1 जुलाई 1989 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश देवकीनंदन अग्रवाल ने भगवान श्री राम विराजमान और जन्मस्थान की ओर से निकट मित्र होने के नाते दाखिल किया था!
वर्ष 1984 में मंदिर मस्जिद के इस विवाद को विश्व हिंदू परिषद ने हवा देते हुए जानकी रथ यात्रा के माध्यम से इस सारे विवाद को अखिल भारतीय स्तर पर उठा दिया और देश के लाखों लोग इस आंदोलन से जुड़ गये! 30 अक्टूबर 1990 को विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर अयोध्या पहुंचे पूरे देश के लाखों कारसेवकों ने विवादित ढांचे पर भगवा ध्वज फहराया और सुरक्षा बलों की फायरिंग में सैंकड़ों कारसेवक हताहत हुए! फिर दोबारा से 2 नवंबर 1990 को विवादित स्थल की ओर बढ़ते हुए कारसेवकों पर सुरक्षा बलों ने फिर गोलीबारी की और काफी संख्या में कारसेवक हताहत हुए! 6 दिसंबर 1992 को लाखों की संख्या में कारसेवकों ने अयोध्या पहुंच कर विवादित ढांचा ढहा दिया! अस्थाई तौर पर रामलला को विराजमान कर दिया गया! इस राम मंदिर आंदोलन के मामले में हुए साम्प्रदायिक हमलों में हजारों की संख्या में हिंदू व मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग हताहत हुए और देश की हजारों करोड़ रूपये की आर्थिक हानि हुई! राम मंदिर और मस्जिद विवाद के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद देश में और किसी भी धर्मस्थल का विवाद ना उठाया जाये ताकि अब देश एकता और भाईचारे की तरफ चले!
राम मंदिर व मस्जिद के इस फैसले के मामले में विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता व राम जन्मभूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली शख्सियत कैलाश सिंघल से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह फैसला मुस्लिम व हिंदू दोनों ही समाज के लिए हितकारी फैसला है व दोनों ही समाज को शांति व एकता बनाई रखनी चाहिए! आगे उन्होंने बताया कि रामलला का मंदिर बनाने के लिए 2.77 एकड़ विवादित जमीन दे दी गई है व केंद्रीय सरकार को तीन महीने में एक कमेटी व ट्रस्ट बनाने के लिए कहा गया है! सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन अयोध्या में देने के लिए कहा गया है! कैलास सिंघल ने आगे बताया कि जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने 40 एकड़ जमीन का राम मंदिर निर्माण के लिए अधिग्रहण किया था व बाद में जब नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे तो उनके निर्देश से लगभग 27 एकड़ और जमीन का राम मंदिर निर्माण के लिए अधिग्रहण कर लिया गया था! इस प्रकार राम मंदिर निर्माण के लिए 67 एकड़ के लगभग जमीन सरकार ने अधिग्रहण की थी! सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में 5 एकड़ जमीन मस्जिद बनाने के लिए जो देने के लिए कहा गया है वो जमीन अयोध्या में ही देने के लिए ही कहा गया है जब की विश्व हिंदू परिषद की मांग थी कि मस्जिद के लिए जमीन सरयू नदी के पास के इलाके में दी जाये! 5 एकड़ जमीन मस्जिद के लिए अयोध्या में कहाँ पर दी जाये इस बात का सुझाव मंदिर निर्माण के लिए जो कमेटी बनेगी वो देगी! कैलास सिंघल से जब पूछा गया कि राम मंदिर के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद विश्व हिंदू परिषद मथुरा और काशी के विवादित धर्मस्थलों को लेकर फिर दोबारा से क्या आंदोलन खड़ा कर सकती है तो उन्होंने कहा कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा क्यों कि विश्व हिंदू परिषद भी देश में शांति, एकता, भाईचारा व विकास चाहती है!
इस खबर के लेखक स्वयं मदन लाहौरिया वर्ष 1984 से वर्ष 1992 तक राम मंदिर आंदोलन से सक्रिय रूप में जुड़े रहे हैं व पूरी तरह से सभी घटनाओं के बारे में जानकारी रखते हैं! इस आंदोलन में सक्रिय रूप से जुड़े हुए सतपाल मधु से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का वे तहदिल से स्वागत करते हैं व मुस्लिम तथा हिंदू दोनों समाज के लोगों से शांति व एकता बनाए रखने की अपील करते हैं! आगे उन्होंने कहा कि अब देश में विकास व प्रगति करने का समय है! धर्म के नाम पर दंगे अब जनता बर्दाश्त नहीं कर सकती! देश इस वक्त आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है! इसलिए मंदिर मस्जिद के मुद्दे पर ज्यादा हायतौबा ना मचाकर देश की आर्थिक प्रगति की सोचें!
आरएसएस व राम मंदिर आंदोलन से जुड़े हुए कार्यकर्ता व अब किसान नेता चंद्रभान काजला से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने इस मंदिर मस्जिद विवाद को एक राजनैतिक स्टंट बना लिया था परंतु सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने देश की जनता के हितों को देखते हुए यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया व मंदिर मस्जिद के विवाद का मुद्दा हमेशा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया! इस के लिए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई बधाई के पात्र हैं! आगे चंद्रभान काजला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू व मुस्लिम दोनों ही समाज के हित में फैसला दिया है! आगे उन्होंने अपील की कि भाजपा से जुड़े हुए सभी संगठनों व हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता राम मंदिर के इस फैसले पर ज्यादा हायतौबा ना मचाये और देश की एकता व भाईचारे की बात करते हुए देश को आर्थिक मंदी की मार से उभारने का प्रयास करें!
व्यापारी वर्ग की तरफ से भीमसेन मित्तल ने भी इस ऐतिहासिक फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि मंदिर निर्माण के साथ-साथ ही मस्जिद का भी निर्माण हो ताकि दोनों समुदाय में एकता व भाईचारा बना रहे! देश अब और धार्मिक दंगे बर्दाश्त नहीं कर सकता!
गुरुग्राम के व्यापारी जितेंद्र मंगला से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस फैसले से हिंदू व मुस्लिम दोनों ही समुदाय में एकता व भाईचारा बढऩे की उम्मीद है! उन्होंने बताया कि वे मूलत: मेवात के रहने वाले हैं और मेवात में हमेशा हिंदू व मुस्लिम दोनों समुदाय आपस में भाईचारे को कायम रखने का भरसक प्रयास करते है!
इसी प्रकार से मोबाईल विक्रेता एवं व्यापारी औमप्रकाश अरोड़ा ने इस फैसले पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का हार्दिक धन्यवाद करते हुए कहा कि वास्तव में मंदिर मस्जिद के इस विवाद का स्थाई हल निकालने के लिए असली हीरो तो मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ही माने जाएंगे!
मजदूर नेता राजेंद्र सरोहा ने मंदिर मस्जिद के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी के द्वारा वर्षों से चलाये जा रहे राम मंदिर के नाम पर राजनैतिक स्टंट के अध्याय का सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने विधिवत रूप से समापन कर दिया! अपने वोटों की दुकानदारी करते हुए भाजपा ने धर्म के नाम पर हमेशा दंगे भडक़ा कर देश की सत्ता हासिल की है! आगे उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक फैसले के बाद यदि भाजपा से जुड़े संगठन फिर दोबारा से कोई भी धार्मिक उन्माद उठाएंगे तो देश की जनता भाजपा को सबक सिखाने के लिए तैयार रहेगी! इस ऐतिहासिक फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का नाम हमेशा याद किया जायेगा!