अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के प्रति समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता : ओ पी धामा

फरीदाबाद 26 नवंबर ! दलित चिंतक, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता और डॉ. बीआर अंबेडकर एजुकेशन सोसाइटी के चेयरमैन ओ पी धामा ने प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति को पत्र लिख कर मांग की है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को जातिगत आधार पर दिए गए आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं के प्रति समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता है। आरक्षण तथा अन्य सुविधाओं के लाभ की पहुंच आखिर 70 साल बाद भी इस अपेक्षित-वंचित समाज तक क्यों नहीं पहुंच सकी? इसके मद्देनजर केंद्र सरकार एक राष्ट्रीय समीक्षा आयोग का गठन करें। ओ पी धामा मंगलवार को बौद्ध विहार स्थित डॉ. बीआर अंबेडकर शिक्षण संस्थान के सभागार में पत्रकारवार्ता कर रहे थे।

उन्होंने कहा की प्रस्तावित अनुसूचित जाति जनजाति राष्ट्रीय समीक्षा आयोग यह समीक्षा करें के आरक्षण का लाभ इन वर्गों को अभी तक क्यों नहीं मिला? इसके क्या कारण रहे हैं? इसके लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं? तथा निर्धारित आरक्षण कैसे इन वर्गों तक शीघ्र अति शीघ्र पहुंचे। उन्होंने कहा के भारतीय समाज जाति आधारित समाज है यहां अनेक जातियां हैं, इनमें से कई ऐसी जातियां हैं जो ऐतिहासिक कारण, अवसरों के अभाव में पिछड़ गई, इन्हीं कारणों से भारत के संविधान में राष्ट्र के सर्वांगीण विकास, सामाजिक ताना-बाना को बनाए रखने और सामाजिक समरसता कायम रखने के लिए वंचित तबके को भी प्रगति की राह पर लाने के लिए संविधान में अतिरिक्त सहूलियत दी गई थी। लेकिन आजादी के 70 वर्ष बाद भी आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं का लाभ लोगों तक अभी तक नहीं पहुंच पाया।

उन्होनें कहा के सो नौकरियों में, साढे साता्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जनजातियों के लिए हैं, 15% आरक्षण अनुसूचित जातियों के लिए है, 27% आरक्षण पिछड़ा वर्ग के लिए है। जिसका टोटल साढे 49% बनता है। जबकि इन वर्गों की कुल आबादी 80% से ऊपर है। बकाया साढे 50% आरक्षण सामान्य वर्ग के लिए है जिनकी जनसंख्या 20% से कम है। अर्थात 20% लोगों के पास सरकारी नौकरियों में साढे 50% आरक्षण है और अन्य जातियों के लिए जिनकी आबादी 80% है। इनको साढे 49% आरक्षण है। यह केवल कुछ सरकारी नौकरियों में है। सेना में, उच्च न्यायिक सेवा में, निजी क्षेत्र में और अन्य बहुत सी सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था नहीं है।  केंद्र सरकार में सचिव, अतिरिक्त सचिव, संयुक्त सचिव वह निदेशक के पदों पर अनुसूचित जाति एवं जनजाति के नाममात्र के अधिकारी हैं। इसी तरह से केंद्रीय विद्यालयों में अनुसूचित जाति जनजाति के अध्यापकों के सैकड़ों पद खाली पड़े, लेकिन लोगों में एक भरम है के अनुसूचित जाति जनजाति को दिए गए आरक्षण के कारण योग्य व्यक्तियो को नौकरियां प्राप्त नहीं हो रही जबकि ऐसा नहीं है। आरक्षण का मामला केवल रोजगार का ही मामला नहीं है यह सामाजिक समानता और आर्थिक संसाधनों में हिस्सेदारी का भी है लेकिन कुछ लोग रोजगार तक सीमित रखना चाहते हैं।

अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग शिक्षा का लाभ क्यों नहीं पहुंचा : राष्ट्रीय समीक्षा आयोग इसकी भी समीक्षा करें कि देश में हजारों वर्षों से इन समुदायों को शिक्षा के क्षेत्र में भी आगे नहीं बढ़ने दिया। वर्तमान में भी शिक्षा पूरी तरह से एक व्यवसाय बन गया है। इन समुदायों के सबसे नीचे पायदान पर रहने वाले व्यक्ति जिन्हें दो वक्त की रोटी के लिए लाले पड़े रहे हो इतनी महंगी शिक्षा कैसे अपने बच्चों को दिला सकता है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के 90% बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं जहां सुविधाओं का बेहद अभाव है। सरकार द्वारा जो सुविधाएं तीन वर्गों के बच्चों को दी गई है वे सुविधाएं भी उन तक कभी भी समय पर नहीं पहुंचती हैं। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय से प्राप्त एक रिपोर्ट के अनुसार आज भी सरकारी प्राइमरी स्कूलों के अध्यापकों के लगभग पांच लाख पद बीते आठ वर्ष से खाली पड़े हैं। करोड़ों अरबों रुपए का बजट स्वीकृत होने के बावजूद भी जानबूझकर लापरवाही के कारण बजट समाप्त(लेप्स) कर दिया जाता है जिनकी कोई जिम्मेदारी निर्धारित नहीं की गई है । धामा ने कहा के क्या पूरे देश में एक जैसी शिक्षा के लिए एक जैसा माहौल मैं शिक्षा नीति सभी बच्चों को नहीं मिल सकती समीक्षा आयोग समीक्षा करें।

अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को क्यों नहीं मिला सरकारी योजनाओं का लाभ : राष्ट्रीय समीक्षा आयोग इस की भी समीक्षा करें। धामा ने कहा केंद्रीय एवं राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों एम जनजातियों की शिक्षा, कल्याण व उत्थान के लिए प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिए स्वीकृत किए जाते हैं, लेकिन प्रत्येक वर्ष उस बजट की आधी राशि भी इन लोगों के कल्याण के लिए उस वर्ष में खर्च नहीं की जाती और करोड़ों रुपए लेप्स कर दिए जाते हैं। जिन लोगों के कारण यह राशि लेप्स होती है इनको किसी भी प्रकार से उत्तरदाई नहीं ठहरा जाता इसकी कोई जांच व समीक्षा नहीं की जाती।.इसी तरह से केंद्र में राज्य सरकारों के मंत्रियों सांसदों विधानसभा के सदस्यों को प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपए का अनुदान मिलता है जिसे अपने क्षेत्र में अपने हिसाब से खर्च कर सकते हैं लेकिन इस मैं से 4 – 5 प्रतिशत राशि ही एससी एसटी के लोगों के लिए खर्च की जाती है कि संस्थाओं को नाममात्र का अनुदान दिया जाता है।

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!