मकर संक्रांति अर्थात् सूर्य उत्तरायण में प्रवेश व महाकुंभ का महान पर्व

शशि कांत शर्मा
चेयरमैन, विश्व ब्राह्मण संघ

मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और उत्तरायण में परिवर्तन को चिह्नित करता है। यह पर्व न केवल खगोलीय दृष्टि से विशेष है, बल्कि आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 14 जनवरी को प्रतिवर्ष मनाए जाने वाला यह पर्व न केवल भारत में, बल्कि नेपाल और अन्य देशों में भी बड़े उत्साह से मनाया जाता है।

मकर संक्रांति का खगोलीय महत्त्व

रात्रौ तु प्रदीषे निशीये वा मकर संक्रमे द्वितीय दिनऽपिपुण्यम् (माधव)

भारतीय ज्योतिष के अनुसार मकर-संक्रांति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है।
मकर संक्रांति वह समय है जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर गति करता है। इसे ऋतुओं के परिवर्तन का भी प्रतीक माना जाता है। उत्तरायण को शुभ और सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण माना गया है। इस दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। मकर संक्रांति का खगोलीय महत्व यह भी है कि यह धरती के वातावरण में ऊर्जा और उर्वरता का प्रतीक बनता है।

महाकुंभ का महत्व

मकर संक्रांति के साथ ही महाकुंभ मेले का आरंभ होता है, जो भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का अद्वितीय संगम है। महाकुंभ भारतीय परंपराओं, ऋषि-मुनियों के आशीर्वाद और सनातन धर्म की गहराइयों का प्रतिबिंब है। यह आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों में चार स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक – पर होता है। मकर संक्रांति के दिन कुंभ स्नान का विशेष महत्व है, जो मानव जीवन के पापों के शोधन और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खोलता है।

मकर संक्रांति और भारतीय परंपरा

मकर संक्रांति को पूरे भारत में विभिन्न नामों और रूपों में मनाया जाता है।
• उत्तर भारत: इसे खिचड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है और गंगा स्नान का विशेष महत्त्व होता है।
• महाराष्ट्र: यहाँ लोग तिल-गुड़ खाकर “गुड़ बोलो और मिठास फैलाओ” का संदेश देते हैं।
• पश्चिम बंगाल: इसे ‘पौष संक्रांति’ कहते हैं और गंगा सागर में स्नान का विशेष महत्व है।
• तमिलनाडु: इसे पोंगल के नाम से मनाया जाता है, जिसमें अन्न और फसल का आभार प्रकट किया जाता है।

सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश

मकर संक्रांति का पर्व दान, सेवा और परोपकार का संदेश देता है। इस दिन तिल और गुड़ का दान किया जाता है, जो न केवल भौतिक बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है। यह पर्व समाज में एकता, समर्पण और सद्भाव का प्रतीक है।

मकर संक्रांति केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह प्रकृति, मानवता और अध्यात्म का संगम है। यह जीवन में सकारात्मकता लाने और समाज को एकता के सूत्र में बांधने का अवसर प्रदान करता है।

– शशि कांत शर्मा
चेयरमैन, विश्व ब्राह्मण संघ

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